बालिका दिवस भावुक कर देगी इन बेटियों की कहानी


साक्षरता दर भले ही बढ़ी हो, लेकिन आज भी कई ऐसे परिवार हैं जिनमें पीढ़ियों से कोई स्कूल नहीं गया। बेटा हो या बेटी, स्कूल का किसी ने रास्ता नहीं देखा। अब बेटियां बदलाव की स्याही से जिंदगी की इबारत लिख रही हैं। पढ़ रही हैं। कोई बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती है, तो किसी का सपना पुलिस अधिकारी बन देश की सेवा करना है। 


डॉक्टर बनकर सेवा करना चाहती है लक्ष्मी 
बोदला स्थित झुग्गी में रहने वाली लक्ष्मी का सपना डॉक्टर बनने का है। उसके माता-पिता लोहपीटा परिवार से हैं। आराधना संस्था की डॉ. हृदेश चौधरी ने उसकी शिक्षा का जिम्मा उठाया है। पिता शेरा और माता सुमन कहती हैं कि जब बेटी बड़े होकर डॉक्टर बनने की बात कहती है तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। वो बेटी के इस सपने को हर हाल में पूरा करेंगे। लक्ष्मी की पढ़ाई देर से शुरू हो सकी, अभी वो एलकेजी में है। 


अशिक्षा को मिटाने का लिया आरती ने संकल्प 
पंचकुइयां स्थित फुटपाथ पर रहने वाली आरती घुमंतु पाठशाला में कक्षा तीन में पढ़ रही है। वो इसी पाठशाला में शिक्षक बनना चाहती है। वो कहती है कि शिक्षित होकर लोगों को साक्षर बनाना है। आरती के माता-पिता लोहा पीटकर छेनी, खुरपी, हंसिया बनाने का काम करते हैं। उसके परिवार में कभी कोई स्कूल नहीं गया। पिता सरदार और माता मुन्नी बेटी के स्कूल जाने से बेहद खुश हैं। 


शिक्षा से घर को रोशन कर रही रोशनी 
प्राथमिक विद्यालय नगला बुढ़ान सय्यद में कक्षा पांच में पढ़ने वाली रोशनी के पिता गरीबदास सफाईकर्मी हैं। मां मीना दूसरे के घरों में झाडू-पोंछा करती हैं। दोनों ही ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। रोशनी का सपना अध्यापिका बनने का है। गरीबदास कहते हैं कि वह बेटी को पढ़ाई से नहीं रोकेंगे। जितना हो सकेगा बेटी को पढ़ाएंगे। प्रधानाचार्य राजीव वर्मा बताते हैं रोशनी पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों में भी बेहद सक्रिय रहती है। 


शालिनी ने थामी कलम और किताब 
जूते के कारखाने में काम करने वाले जितेंद्र का कलम और किताब से दूर-दूर तक का नाता नहीं रहा। पढ़ाई से बैर रहा, तो जिंदगी दोजख बन गई। बच्ची में पढ़ाई की ललक देखकर उसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। अब उसे उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए देखना है। जितेंद्र की बेटी शालिनी कक्षा पांच की छात्रा है। मां विमलेश गृहणी हैं। शालिनी का सपना बडे़ होकर डॉक्टर बनने का है। माता-पिता भी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। 


डॉली के दिल में देश की सेवा का जज्बा 
महज एक कमरे में गुजर-बसर करने वाले परिवार की होनहार बेटी डॉली पुलिस अधिकारी बन देश की सेवा करना चाहती है। राज्य स्तरीय जूडो प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल प्राप्त कर चुकी हैं। पिता रूपकिशोर ग्लास फैक्ट्री में काम करते हैं। मां माया देवी घरों में जाकर खाना पकाती हैं। तीन बहनों में सबसे छोटी डॉली वर्तमान में दयालबाग से एनटीटी कर रही हैं। वह एकलव्य स्टेडियम में खेलों का प्रशिक्षण लेना चाहती हैं। पैसों की तंगी आड़े आ रही है।